आपकी खोज से संबंधित
परिणाम "shaoor shumara number 001 magazines"
अत्यधिक संबंधित परिणाम "shaoor shumara number 001 magazines"
ग़ज़ल
हैं उस के सामने ऐ 'शौक़' किस शुमार में फूल
खिले हों जिस के कफ़-ए-पा से रेगज़ार में फूल
अब्दुल्लतीफ़ शौक़
शेर
तिरी आवाज़ को इस शहर की लहरें तरसती हैं
ग़लत नंबर मिलाता हूँ तो पहरों बात होती है
ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर
शायरी के अनुवाद
आज मैं ने अपने घर का नंबर मिटा दिया है
और गुल की पेशानी पर सब्त गुल का नाम हटा दिया है
अमृता प्रीतम
नज़्म
मैं और शहर
सड़कों पे बे-शुमार गुल-ए-ख़ूँ पड़े हुए
पेड़ों की डालियों से तमाशे झड़े हुए
मुनीर नियाज़ी
अन्य परिणाम "shaoor shumara number 001 magazines"
ग़ज़ल
सर-ए-राह कुछ भी कहा नहीं कभी उस के घर मैं गया नहीं
मैं जनम जनम से उसी का हूँ उसे आज तक ये पता नहीं
बशीर बद्र
ग़ज़ल
ऐ दिल तिरे ख़ुलूस के सदक़े! ज़रा सा होश
दुश्मन भी बे-शुमार हैं यारों के शहर में
अब्दुल हमीद अदम
ग़ज़ल
तिरी आवाज़ को इस शहर की लहरें तरसती हैं
ग़लत नंबर मिलाता हूँ तो पहरों बात होती है