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शेर
चंद घंटे शोर ओ ग़ुल की ज़िंदगी चारों तरफ़
और फिर तन्हाई की हम-साएगी चारों तरफ़
मुहम्मद याक़ूब आमिर
ग़ज़ल
चंद घंटे शोर ओ ग़ुल की ज़िंदगी चारों तरफ़
और फिर तन्हाई की हम-साएगी चारों तरफ़
मुहम्मद याक़ूब आमिर
ग़ज़ल
शोर-ओ-ग़ुल आहें कराहें और अलम पैहम था 'शाद'
रात मेरे दिल की बस्ती का अजब मौसम था 'शाद'
शमशाद शाद
ग़ज़ल
शोर-ओ-ग़ुल आहें कराहें और अलम पैहम था 'शाद'
रात मेरे दिल की बस्ती का 'अजब मौसम था 'शाद'
शमशाद शाद
शेर
असीरों का नहीं कुछ शोर-ओ-ग़ुल ये आज ज़िंदाँ में
मिरे दीवाना-पन को देख कर ज़ंजीर हँसती है
शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम
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shiir-e-gul
शीर-ए-गुलشیر گل
गुल-क़न्द नाम की एक मिठाई जो गुलाब की पत्तियों और चीनी या शहद के साथ तैयार होती है
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नज़्म
रौ में है रख़्श-ए-उम्र
रहगुज़र पर शोर-ओ-ग़ुल का सैल है
बह रहा है ख़ुश्क तिनके की तरह
बलराज कोमल
नज़्म
रौ में है रख़्श-ए-उम्र
रहगुज़र पर शोर-ओ-ग़ुल का सैल है
बह रहा है ख़ुश्क तिनके की तरह
बलराज कोमल
नज़्म
जंगल: एक हश्त पहलू तस्वीर
शहर के आरे चलाते बे-सुरे बद-रंग शोर-ओ-ग़ुल से दूर
पाक रंगों का सनम आबाद
अमीक़ हनफ़ी
ग़ज़ल
तिरे शहर से निकलते ही मिज़ाज-ए-दहर ला ही
न वो रब्त-ए-शबनम-ओ-गुल न वो बाद-ए-सुब्ह-गाही
मंज़ूर हुसैन शोर
ग़ज़ल
यही जमाल-ए-गुल-ओ-सुख़न है तो आ चमन से धुआँ उठावें
रविश रविश पर बिछे रहेंगे ये लाला-ओ-गुल के दाम कब तक
मंज़ूर हुसैन शोर
ग़ज़ल
मुझे 'शोर' दे रहे हैं वो फ़रेब-ए-तेज़-गामी
कि जो दो क़दम भी चलते तो न ए'तिबार होता
मंज़ूर हुसैन शोर
ग़ज़ल
मुसल्लम गुल-कदों की लाला-सामानी मगर हमदम
शरार-ओ-बर्क़ को भी मो'तबर कहना ही पड़ता है