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ग़ज़ल
न सोवे आबलों में गर सरिश्क-ए-दीदा-ए-नाम से
ब-जौलाँ-गाह-ए-नौमीदी निगाह-ए-आजिज़ाँ पा है
मिर्ज़ा ग़ालिब
कुल्लियात
चश्म-ए-तमाशा वा होवे तो देखा-भाली ग़नीमत है
मत मूँदे आँखों को ग़ाफ़िल देर तलक फिर सोवे गा
मीर तक़ी मीर
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ग़ज़ल
शब-ए-फ़ुर्क़त का जागा हूँ फ़रिश्तो अब तो सोने दो
कभी फ़ुर्सत में कर लेना हिसाब आहिस्ता आहिस्ता
अमीर मीनाई
ग़ज़ल
मक़ाम-ए-गुफ़्तुगू क्या है अगर मैं कीमिया-गर हूँ
यही सोज़-ए-नफ़स है और मेरी कीमिया क्या है