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ग़ज़ल
जिस की शमीम-ए-ज़ुल्फ़ पे मैं ग़श हूँ 'शेफ़्ता'
उस ने शमीम-ए-ज़ुल्फ़ सुँघाई तमाम शब
मुस्तफ़ा ख़ाँ शेफ़्ता
ग़ज़ल
ये किस तलब की हवाएँ मशाम-ए-जाँ में चलीं
कि जलते गोश्त की ख़ुशबू फ़क़त सुँघाई दे
मुसव्विर सब्ज़वारी
ग़ज़ल
न मैं लाग हूँ न लगाव हूँ न सुहाग हूँ न सुभाव हूँ
जो बिगड़ गया वो बनाव हूँ जो नहीं रहा वो सिंगार हूँ
मुज़्तर ख़ैराबादी
नज़्म
एक आरज़ू
मेहंदी लगाए सूरज जब शाम की दुल्हन को
सुर्ख़ी लिए सुनहरी हर फूल की क़बा हो
अल्लामा इक़बाल
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नज़्म
ख़ुदा का सवाल
तू मेराज-ए-फ़न तू ही फ़न का सिंघार
मुसव्विर हूँ मैं तू मिरा शाहकार
अबरार अहमद काशिफ़
ग़ज़ल
तुम ही न सुन सके अगर क़िस्सा-ए-ग़म सुनेगा कौन
किस की ज़बाँ खुलेगी फिर हम न अगर सुना सके
हफ़ीज़ जालंधरी
नज़्म
ए'तिराफ़
हर मसर्रत में है राज़-ए-ग़म-ओ-हसरत पिन्हाँ
क्या सुनोगी मिरी मजरूह जवानी की पुकार
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
बंजारा-नामा
क्या साज़ जड़ाओ ज़र-ज़ेवर क्या गोटे थान कनारी के
क्या घोड़े ज़ीन सुनहरी के क्या हाथी लाल अमारी के
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
पास रहो
और बच्चों के बिलकने की तरह क़ुलक़ुल-ए-मय
बहर-ए-ना-सूदगी मचले तो मनाए न मने
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
दर्द आएगा दबे पाँव
लाओ सुल्गाओ कोई जोश-ए-ग़ज़ब का अँगार
तैश की आतिश-ए-जर्रार कहाँ है लाओ