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ग़ज़ल
निकलना ख़ुल्द से आदम का सुनते आए हैं लेकिन
बहुत बे-आबरू हो कर तिरे कूचे से हम निकले
मिर्ज़ा ग़ालिब
नज़्म
शिकवा
बादा-कश ग़ैर हैं गुलशन में लब-ए-जू बैठे
सुनते हैं जाम-ब-कफ़ नग़्मा-ए-कू-कू बैठे
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
ज़माना वारदात-ए-क़ल्ब सुनने को तरसता है
इसी से तो सर आँखों पर मिरा दीवान लेते हैं
फ़िराक़ गोरखपुरी
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नज़्म
मैं पल दो पल का शा'इर हूँ
कल और आएँगे नग़्मों की खिलती कलियाँ चुनने वाले
मुझ से बेहतर कहने वाले तुम से बेहतर सुनने वाले
साहिर लुधियानवी
ग़ज़ल
मैं उस को हर रोज़ बस यही एक झूट सुनने को फ़ोन करता
सुनो यहाँ कोई मसअला है तुम्हारी आवाज़ कट रही है
तहज़ीब हाफ़ी
नज़्म
दरख़्त-ए-ज़र्द
कहानी सुनने वाले जो भी हैं वो ख़ुद कहानी हैं
कहानी कहने वाला इक कहानी की कहानी है
जौन एलिया
शेर
सुनते हैं इश्क़ नाम के गुज़रे हैं इक बुज़ुर्ग
हम लोग भी फ़क़ीर उसी सिलसिले के हैं