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ग़ज़ल
शफ़ीक़ बरेलवी
ग़ज़ल
मुकम्मल सुर्ख़ी-ए-अफ़्साना-ए-दिल होती जाती है
हमारी दास्ताँ सुनने के क़ाबिल होती जाती है
शिफ़ा ग्वालियारी
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ग़ज़ल
किस का किस का हाल सुनाया तू ने ऐ अफ़्साना-गो
हम ने एक तुझी को ढूँडा इस सारे अफ़्साने में
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
उन से हम से प्यार का रिश्ता ऐ दिल छोड़ो भूल चुको
वक़्त ने सब कुछ मेट दिया है अब क्या नक़्श उभारोगे