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ग़ज़ल
अहमद हुसैन माइल
ग़ज़ल
आग़ा अकबराबादी
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ग़ज़ल
जब इन की ज़ुल्फ़ों को सूँघा तो अंदलीब-ए-ख़याल
गुलाब ओ नर्गिस ओ रैहान से निकल आया
सय्यद सलमान गीलानी
नज़्म
एक शर्मिंदा नज़्म
लेकिन मैं ने तुझे कब चखा सूँघा देखा सुना महसूस किया है
जब से मैं जागा हूँ
जावेद अनवर
ग़ज़ल
वो सुँघा कर ज़ुल्फ़-ए-मुश्कीं होश में लाए मुझे
साँप ने चूसा है अपने ज़हर की तासीर को