aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "taa-had-e-ehsaas"
तसव्वुरात के हसरत-कदे में कौन आयाचराग़ ता-हद-ए-एहसास जलते जाते हैं
ता हद्द-ए-नज़र दमक रहे हैं ज़र्रेसद-शो'ला-ब-जाँ दहक रहे हैं ज़र्रे
है ता-हद्द-ए-नज़र नीला समुंदरबदन में फ़ड़फ़ड़ाता है कबूतर
है सुलगती धूप ता-हद्द-ए-नज़रलाए थे हम एक सूरज माँग कर
काँटे ही काँटे हैं ता-हद्द-ए-नज़रफिर भी ताज़ा है मिरा अज़्म-ए-सफ़र
पान हिन्दुस्तानी तहज़ीब का एक अहम हिस्सा है। हिन्दुस्तान के एक ब़ड़े हिस्से में पान खाना और खिलाना समाजी राब्ते और तअल्लुक़ात को बढ़ाने और मेहमान-नवाज़ी की रस्म को क़ायम रखने का अहम ज़रिया है। पान की लाली अगर महबूब के होंठों पर हो तो शायर इसे सौ तरह से देखता और बयान करता है। आप भी मुलाहिज़ फ़रमाइये पान शायरी का यह रंगः
शायरी में महबूब के जिस्मानी आज़ा के बयान वाला हिस्सा बहुत दिल-चस्प और रूमान-पर्वर है। यहाँ आप महबूब के रुख़्सार का बयान पढ़ कर ख़ुद अपने बदन में एक झुरझुरी सी महसूस करने लगेंगे। हम यहाँ नई पुरानी शायरी से रुख़्सार को मौज़ू बनाने वाले कुछ अच्छे शेरों का इन्तिख़ाब आप के लिए पेश कर रहे हैं।
मय-कशी पर शायरी मौज़ूआती तौर पर बहुत मुतनव्वे है। इस में मय-कशी की हालत के तजुर्बात और कैफ़ियतों का बयान भी है और मय-कशी को लेकर ज़ाहिद-ओ-नासेह से रिवायती छेड़-छाड़ भी। इस शायरी में मय-कशों के लिए भी कई दिल-चस्प पहलू हैं। हमारे इस इन्तिख़ाब को पढ़िए और लुत्फ़ उठाइये।
ता-हद-ए-एहसासتا حد احساس
upto the limit of emotions/feeling
Ta hadd-e-Nigah
ज़िया सरहदी
मनोवैज्ञानिक
Intekhab-e-Urdu Rubaiyat Aaghaz Ta Haal
सलमा कुबरा
महिलाओं की रचनाएँ
Intikhab-e-Manzoomat
मसऊद अालम
संकलन
Jazair Andman-o-Neekobar : Mazi Ta Haal
एम. अहमद मुजतबा
शोध एवं समीक्षा
Mazar-e-Ghalib
शम्स बदायूनी
शोध
Had-e-Jaan Se Guzarne Tak
साहिर दाऊदनगरी
Tareekh-e-Ahsan
मोहम्मद अब्दूल हई
Aaina-e-Ehsas
मोहम्मद ताजुद्दीन ताज औरंगाबादी
शाइरी
Shaoor-e-Ehsas
अब्दुल हई पयाम अंसारी
काव्य संग्रह
Aurat Zaban-e-Khalq Se Zaban-e-Haal Tak
किश्वर नाहीद
मज़ामीन / लेख
तार-ए-पैराहन
शानुल हक़ हक़्क़ी
Tah-e-Dariya
अहसन यूसुफ़ ज़ई
Gulzar Ek Ehsas Hai
शीराज़ सागर
शायरी तन्क़ीद
Dama Dam Ravaan Hai Yam-e-Zindagi
ख़ुर्रम अली शफ़ीक़
आलोचना
Sher-ul-Ajam
मोहम्मद इकरामुल हक़
ता-हद्द-ए-बीनाई अंदर बाहर हूरये कैसा मंज़र है मंज़र-मंज़र हूर
प्यास बढ़ती हुई ता-हद्द-ए-नज़र पानी थारू-ब-रू कैसा अजब मंज़र-ए-हैरानी था
ता-हद्द-ए-नज़र चाँदनी इस तरह खुली हैजैसे तिरे होंटों की हँसी फैल गई है
ता-हद्द-ए-नज़र अर्श पे फैला जो धुआँ हैफ़रियाद है मातम है बपा आह-ओ-फ़ुग़ाँ है
वैसे देखें तो ये ता-हद्द-ए-नज़र रहते हैंदर-ब-दर फिर भी यहाँ लोग मगर रहते हैं
दूर ता-हद्द-ए-उफ़ुक़ मंज़र सुनहरा हो गयारफ़्ता रफ़्ता शाम का हर रंग गहरा हो गया
ज़मीं में रह के भी ता-हद्द-ए-आसमाँ देखूँमुझे तो आ रहे हो तुम नज़र जहाँ देखूँ
है ता-हद्द-ए-इम्काँ कोई बस्ती न बयाबाँआँखों में कोई ख़्वाब दिखाई नहीं देता
चमन सा दश्त ता-हद्द-ए-नज़र कितना हसीं हैतू मेरा हम-क़दम है तो सफ़र कितना हसीं है
ता-हद्द-ए-नज़र कोई भी दम-साज़ नहीं हैया फिर मिरी चीख़ों में ही आवाज़ नहीं है
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