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नज़्म
बंजारा-नामा
क्या बुग़चे ताश मोशज्जर के क्या तख़्ते शाल दोशालों के
सब ठाठ पड़ा रह जावेगा जब लाद चलेगा बंजारा
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
एक ख़्वाब
और कभी फ़र्श से मुझ को भी उठाया है मना कर
ताश के पत्तों पे लड़ती है कभी खेल में मुझ से
गुलज़ार
हास्य शायरी
मैं तो फेंट फेंट के फट गया मैं फटा हुआ वही ताश हूँ
मुझे खेलता कोई और है मुझे फेंटता कोई और है
ज़ियाउल हक़ क़ासमी
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विषय
होली
होली शायरी
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ग़ज़ल
ये सच है अपनी क़िस्मत कोई कैसे देख सकता है
मगर मैं ताश के पत्ते उठा कर देख लेता हूँ
मोहम्मद अल्वी
हास्य शायरी
लेडियों से मिल के देखो उन के अंदाज़-ओ-तरीक़
हॉल में नाचो क्लब में जाके खेलो उन से ताश
अकबर इलाहाबादी
ग़ज़ल
नया कम-ख़्वाब का लहँगा झमकते ताश की अंगिया
कुचें तस्वीर सी जिन पे लगा गोटा कनारी है
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
फ़ना
कपड़े जहाँ तलक हैं सपीदा ओ सियह नुमूं
किम-ख़्वाब ताश बादिला किस किस का नाम लूँ