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ग़ज़ल
बोरिया तख़्त-ए-सुलैमाँ से कहीं बेहतर है
हम ग़रीबों को नहीं ताज-ओ-नगीं का लालच
परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़
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नज़्म
जवाब-ए-शिकवा
नाज़ है ताक़त-ए-गुफ़्तार पे इंसानों को
बात करने का सलीक़ा नहीं नादानों को
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
दार-ओ-रसन
वो तख़्त-ए-सल्तनत-ओ-बारगाह-ए-सुल्तानी
कि जिस में बैठते थे आ के ज़िल्ल-ए-सुब्हानी
मोहम्मद अली तिशना
नज़्म
इक सितारा आदर्श का
शहद-ओ-गंदुम से ज़ुरूफ़ उबले हुए
तख़्त-ओ-ताज-ओ-मोहर-ए-शाही के निगहबाँ
शफ़ीक़ फातिमा शेरा
ग़ज़ल
दाइम है सुल्तानी हम शहज़ादों ख़ाक-निहादों की
बर्क़-ओ-शरर की मसनद हो या तख़्त-ए-बाद-ए-बहारी हो
इरफ़ान सिद्दीक़ी
नज़्म
मुसीबत की ख़बरें
उसी साहिब-ए-तख़्त-ओ-ताज-ओ-तरब को
जिसे आज इस्लाम की पासबानी का पूरा शरफ़ है