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हास्य
ब-ज़ाहिर देखने में सिर्फ़ इक मोटर की टक्कर है
किसी दिल-फेंक से लेकिन किसी दिलबर की टक्कर है
ज़रीफ़ जबलपूरी
नज़्म
मुझे जाना है इक दिन
अभी इंसानियत दौलत से टक्कर ले नहीं सकती
मुझे जाना है इक दिन तेरी बज़्म-ए-नाज़ से आख़िर
असरार-उल-हक़ मजाज़
ग़ज़ल
इस मौज की टक्कर से साहिल भी लरज़ता है
कुछ रोज़ तो तूफ़ाँ की आग़ोश में पल जाए
फ़ना निज़ामी कानपुरी
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नज़्म
तुम जो सियाने हो गुन वाले हो
तूफ़ानों से टक्कर ले ली जब थामे पतवार
प्यार के नाते जिस कश्ती के लाखों खेवन-हार
अदा जाफ़री
ग़ज़ल
कि अब की बार जान-ए-मन बहुत काँटे की टक्कर है
नया लड़का उधर है तो इधर शाइ'र पुराना है
तनोज दाधीच
तंज़-ओ-मज़ाह
मिर्ज़ा फ़रहतुल्लाह बेग
हास्य
बहाने-बाज़ हैं मक्कार हैं झूटे हैं शातिर हैं
मिले हैं अब कहीं जा कर उन्हें उश्शाक़ टक्कर के
मसरूर शाहजहाँपुरी
ग़ज़ल
आरज़ू लखनवी
नज़्म
क़ुर्बानी के बकरे
चलते हुए जुलूस में टक्कर लगा दी है
और वोटरों में पार्टी-बाज़ी करा दी है