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नज़्म
मुझे अपने जीने का हक़ चाहिए
मुझे अपने जीने का हक़ चाहिए
ज़मीं जिस पे मेरे क़दम टिक सकें
अमजद इस्लाम अमजद
नज़्म
मुझे अपने जीने का हक़ चाहिए
मुझे अपने जीने का हक़ चाहिए
ज़मीं जिस पे मेरे क़दम टिक सकें
अमजद इस्लाम अमजद
ग़ज़ल
गुज़रना रहगुज़ारों से बड़ा आसान था पहले
इलाक़ा हम जहाँ रहते हैं वो सुनसान था पहले
ख़्वाजा जावेद अख़्तर
ग़ज़ल
आ गई सर पर क़ज़ा लो सारा सामाँ रह गया
ऐ फ़लक क्या क्या हमारे दिल में अरमाँ रह गया
भारतेंदु हरिश्चंद्र
नज़्म
जवाहर-लाल नेहरू
जिस्म की मौत कोई मौत नहीं होती है
जिस्म मिट जाने से इंसान नहीं मर जाते
साहिर लुधियानवी
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ग़ज़ल
मजरूह सुल्तानपुरी
ग़ज़ल
वही हैं क़त्ल-ओ-ग़ारत और वही कोहराम है साक़ी
तमद्दुन और मज़हब की ये ख़ूनी शाम है साक़ी
अजय सहाब
ग़ज़ल
तुझ को मुश्किल नहीं मुश्किल मिरी आसाँ कर दे
ख़ाक के ज़र्रे को हम-दोश-ए-सुलेमाँ कर दे