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हास्य
ठोक कर काले को गोरे ने तो अपनी राह ली
चोट के सदमे से ग़श काले को आया चंद-बार
अल्ताफ़ हुसैन हाली
ग़ज़ल
ऐ दिल अब इश्क़ की लै-गोई और चौगान में आ
बे-ख़तर ठोक के ख़म जंग के सामान में आ
क़ासिम अली ख़ान अफ़रीदी
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नज़्म
एक आरज़ू
रातों को चलने वाले रह जाएँ थक के जिस दम
उम्मीद उन की मेरा टूटा हुआ दिया हो