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ग़ज़ल
सब से कट कर रह गया ख़ुद मैं सिमट कर रह गया
सिलसिला टूटा कहाँ से सोचता भी मैं ही था
ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर
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नज़्म
मौत
मिरा टूटा हुआ वो साज़ कहाँ है लाना
इक ज़रा गीत भी इस साज़ पे गा लूँ तो चलूँ
मुईन अहसन जज़्बी
ग़ज़ल
कहें क्या हम कहाँ आ के तिरे वहशी ने दम तोड़ा
ख़िरद समझा-बुझा के ले तो आई थी बयाबाँ से
एहसान दरबंगावी
नज़्म
सहर होने तक
कहाँ पे टूटता जब्र-ए-हयात का अफ़्सूँ
कहाँ पहुँच के ख़यालों को आसरा मिलता?