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ग़ज़ल
सबा से करते हैं ग़ुर्बत-नसीब ज़िक्र-ए-वतन
तो चश्म-ए-सुब्ह में आँसू उभरने लगते हैं
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
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नज़्म
आज की बातें कल के सपने
मेरे बेचैन ख़यालों पे उभरने वाली
अपने ख़्वाबों से न बहला मेरी तन्हाई को
क़तील शिफ़ाई
ग़ज़ल
ज़ख़्म-ए-फ़ुर्क़त को तिरी याद ने भरने न दिया
ग़म-ए-तंहाई मगर रुख़ पे उभरने न दिया