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ग़ज़ल
उल्टी है न उल्टेंगे नक़ाब-ए-रुख़-ए-रौशन
माना है न मानेंगे वो कहना मिरे दिल का
मिर्ज़ा मायल देहलवी
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नज़्म
दर्द आएगा दबे पाँव
उस से कब तेरी मुसीबत का मुदावा होगा
मुश्तइल हो के अभी उट्ठेंगे वहशी साए
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
ग़ज़ल
दरीचों को तो देखो चिलमनों के राज़ तो समझो
उठेंगे पर्दा-हा-ए-बाम-ओ-दर आहिस्ता आहिस्ता
मुस्तफ़ा ज़ैदी
ग़ज़ल
उट्ठेंगे अभी और भी तूफ़ाँ मिरे दिल से
देखूँगा अभी इश्क़ के ख़्वाब और ज़ियादा
असरार-उल-हक़ मजाज़
ग़ज़ल
दस्त-ओ-पा रखते हैं और बे-कार क्यों बैठे रहें
हम उठेंगे अपनी क़िस्मत को बनाने के लिए