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आँगन
आँगन शायरी
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हिंदी ग़ज़ल
आज जो ऊँचाई पर है क्या पता कल गिर पड़े
इतना कह के ऊँची शाख़ों से कई फल गिर पड़े
कुंवर बेचैन
ग़ज़ल
तेरे महल में कैसे बसर हो इस की तो गीराई बहुत है
मैं घर की अँगनाई में ख़ुश हूँ मेरे लिए अँगनाई बहुत है
साहिर होशियारपुरी
ग़ज़ल
तेरी रा'नाई-ए-क़ुदरत पे त'अज्जुब है ख़ुदा
इन पहाड़ों में ये ऊँचाई कहाँ से आई
अर्पित शर्मा अर्पित
ग़ज़ल
इतनी ऊँचाई से धरती की ख़बर क्या जाने
उस को मिट्टी ने ही पाला है शजर क्या जाने