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ग़ज़ल
सहे सितम पे सितम फिर भी मुद्दआ न मिला
हमें तो दर्द में भी दर्द का मज़ा न मिला
सय्यद वाजिद अली फ़र्रुख़ बनारसी
ग़ज़ल
आज़ाद उस से हैं कि बयाबाँ ही क्यूँ न हो
फाड़ेंगे जेब गोशा-ए-ज़िंदाँ ही क्यूँ न हो
वहशत रज़ा अली कलकत्वी
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ग़ज़ल
किसी तरह दिन तो कट रहे हैं फ़रेब-ए-उम्मीद खा रहा हूँ
हज़ार-हा नक़्श आरज़ू के बना रहा हूँ मिटा रहा हूँ
वहशत रज़ा अली कलकत्वी
ग़ज़ल
हम मअनी-ए-हवस नहीं ऐ दिल हवा-ए-दोस्त
राज़ी हो बस इसी में हो जिस में रज़ा-ए-दोस्त
मौलाना मोहम्मद अली जौहर
ग़ज़ल
इक हसीं को दिल दे कर क्या बताएँ क्या पाया
लज़्ज़त-ए-फ़ना चक्खी ज़ीस्त का मज़ा पाया