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ग़ज़ल
है वादा-ए-विसाल-ए-सनम की वो सरख़ुशी
हर शय हसीन अब मिरी फ़िक्र-ओ-नज़र में है
हरबंस लाल अनेजा 'जमाल'
ग़ज़ल
जब ना-गहाँ मिले तो किया वादा-ए-विसाल
ये इल्तिफ़ात है कि बहाना कहें जिसे
सुल्तानुल हक़ शहीदी काश्मीरी
ग़ज़ल
वा'दा कर के भी न तुम आओ तुम्हारा इख़्तियार
हम करेंगे रात-दिन फिर भी तुम्हारा इंतिज़ार
नरेश एम. ए
ग़ज़ल
मयस्सर हो तो क़द्रे लुत्फ़ भी नेमत है याँ यारो
किसी का वादा-ए-ऐश-ए-दवाम अच्छा नहीं लगता
आल-ए-अहमद सुरूर
शेर
बद-क़िस्मतों को गर हो मयस्सर शब-ए-विसाल
सूरज ग़ुरूब होते ही ज़ाहिर हो नूर-ए-सुब्ह
परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़
ग़ज़ल
बद-क़िस्मतों को गर हो मयस्सर शब-ए-विसाल
सूरज ग़ुरूब होते ही ज़ाहिर हो नूर-व-सुब्ह
परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़
ग़ज़ल
फ़रेब-ए-वा'दा-ए-फ़र्दा बहुत ही 'आरज़ी शय है
रहेंगे 'उम्र भर इस दिल पे चोटों के निशाँ बाक़ी
रुख़्साना निकहत लारी उम्म-ए-हानी
ग़ज़ल
शिकवा-ए-वादा-ख़िलाफ़ी का मिला अच्छा जवाब
पेशगी रक्खी थी इक उम्मीद बर आई हुई
परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़
ग़ज़ल
किया है वा'दा तो फिर बज़्म-ए-रक़्स में आना
न कीजियो मुझे तुम शर्मसार होली में