aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "woh"
जॉन वुल्फगांग गेटे
1749 - 1832
लेखक
वी.एच. जेक्सन
इरक ऊढ़
मजलिस-ए-फ़िक्र-ओ-अदब, कराची
पर्काशक
वी.एफ़. शिकालयाबिन
संपादक
वॉव कारपेंसकी
दयार-ए-फ़िक्र-वो-फन, कलकत्ता
वॉव. रे. कुलानदा
सर सय्यद काँलेज, वाह कैन्ट
वी.एच जाफ़री
इदारा-ए-रहबर सनत-ओ-तिजारत
वुड हाऊस, नई दिल्ली
तरतीब-ओ-पेशकश शादाँ देहेलवी
इदारा तहक़ीक़ात-ओ-इशाअत-ए-उलूम-ए-क़ुरान, अलीगढ़
वो सर्व-क़द है मगर बे-गुल-ए-मुराद नहींकि उस शजर पे शगूफ़े समर के देखते हैं
वो मिले तो ये पूछना है मुझेअब भी हूँ मैं तिरी अमान में क्या
लीडर जब आँसू बहा कर लोगों से कहते हैं कि मज़हब ख़तरे में है तो इसमें कोई हक़ीक़त नहीं होती। मज़हब ऐसी चीज़ ही नहीं कि ख़तरे में पड़ सके, अगर किसी बात का ख़तरा है तो वो लीडरों का है जो अपना उल्लू सीधा करने के लिए मज़हब को...
आज हम दार पे खींचे गए जिन बातों परक्या अजब कल वो ज़माने को निसाबों में मिलें
ख़त ऐसा लिखा है कि नगीने से जड़े हैंवो हाथ कि जिस ने कोई ज़ेवर नहीं देखा
आधुनिक उर्दू नज़्म के संस्थापकों में शामिल। अग्रणी फ़िल्म-संवाद लेखक। फ़िल्म ' वक़्त ' और ' क़ानून ' के संवादों के लिए मशहूर।
नुसरत फ़तेह अली ख़ान ने बेशुमार कव्वालियाँ और ग़ज़लें गाई हैं ,और ग़ज़ल गायकी हो या क़व्वाली दोनों में अपनी आवाज़ और हुनर से लोगों का दिल जीता है। इस इंतिख़ाब में कुछ ऐसी ग़ज़लें पेश की जा रही हैं जिन्हें नुसरत साहब की आवाज़ ने ज़िंदा कर दिया है। पढ़िए और लुत्फ़ लीजिए।
वाहواہ
Oh!, word of praise
खूब, साधु, धन्य ।
Woh Tera Shair Woh Tera Nasir
हसन रिज़वी
Woh Shahr
आमिना इक़बाल अहमद
उपन्यास
Woh Baizawi Tasweer
एडगर एलन पो
कहानी
Woh Jo Shairy Ka Sabab Hua
कलीम आजिज़
काव्य संग्रह
Woh Bhi Ek Zamana Tha
अनीस अमरोहवी
जीवनी
Mujhe To Hairan Kar Gaya Woh
अहमद अक़ील रूबी
Mahboob-e-Zil-Manan Tazkira-e-Auliya-e-Dakan
मोहम्मद अब्दुल जब्बार ख़ान
तज़किरा
Ab Woh Utarne Wala Hai
अनीस रफ़ी
अफ़साना
Alif Laila Urdu Vol 1-4
वह क़ुर्बतें सी वह फ़ासले से
मिर्ज़ा ज़फ़रुल हसन
सफ़र-नामा / यात्रा-वृतांत
वो जो शाइरी का सबब हुआ
Jo Mere Woh Raja Ke Nahin
सुग़रा मेहदी
कहानियाँ
Woh Aur Dusre Afsane Darame
रशीद जहाँ
वह जिंहें कोई नहीं जानता
अनवर साबरी
परिचय
Baqiya-e Tilism-e Hoshruba
मुंशी अहमद हुसैन क़मर
दास्तान
जो गुज़ारी न जा सकी हम सेहम ने वो ज़िंदगी गुज़ारी है
दोनों जहान तेरी मोहब्बत में हार केवो जा रहा है कोई शब-ए-ग़म गुज़ार के
जो इक नस्ल-ए-फ़रोमाया को पहुँचेवो सरमाया इकट्ठा क्यों करें हम
हम आह भी करते हैं तो हो जाते हैं बदनामवो क़त्ल भी करते हैं तो चर्चा नहीं होता
कितने ऐश से रहते होंगे कितने इतराते होंगेजाने कैसे लोग वो होंगे जो उस को भाते होंगे
सोसाइटी के उसूलों के मुताबिक़ मर्द मर्द रहता है ख़्वाह उसकी किताब-ए-ज़िंदगी के हर वर्क़ पर गुनाहों की स्याही लिपि हो। मगर वो औरत जो सिर्फ़ एक मर्तबा जवानी के बे-पनाह जज़्बे के ज़ेर-ए-असर या किसी लालच में आकर या किसी मर्द की ज़बरदस्ती का शिकार हो कर एक लम्हे...
वेश्या पैदा नहीं होती, बनाई जाती है। या ख़ुद बनती है। जिस चीज़ की मांग होगी मंडी में ज़रूर आएगी। मर्द की नफ़सानी ख़्वाहिशात की मांग औरत है। ख़्वाह वो किसी शक्ल में हो। चुनांचे इस मांग का असर ये है कि हर शहर में कोई ना कोई चकला मौजूद...
हम हैं मुश्ताक़ और वो बे-ज़ारया इलाही ये माजरा क्या है
जिस औरत के दरवाज़े शहर के हर उस शख़्स के लिए खुले हैं जो अपनी जेबों में चाँदी के चंद सिक्के रखता हो। ख़्वाह वो मोची हो या भंगी, लंगड़ा हो या लूला, ख़ूबसूरत हो या करीहत-उल-मंज़र, उस की ज़िंदगी का अंदाज़ा ब-ख़ूबी लगाया जा सकता है।...
याद रखिए ग़ुर्बत लानत नहीं है जो उसे लानत ज़ाहिर करते हैं वो ख़ुद मल्ऊन हैं। वो ग़रीब उस अमीर से लाख दर्जे बेहतर है जो अपनी कश्ती ख़ुद अपने हाथों से खेता है......
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