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ग़ज़ल
'ज़मीर'-ए-सरकश-ओ-आशुफ़्ता-सर पे जाने क्या गुज़री
उसूलों से वो कर के आज समझौता निकलता है
ज़मीर अहमद
ग़ज़ल
ये तेरी बे-ज़री और हासिदों का ये हसद तौबा
अगर ऐ 'अम्न' तेरे पास ज़र होता तो क्या होता
अम्न लख़नवी
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ग़ज़ल
किसे फ़ित्ना समझ कर अपनी महफ़िल से उठाता है
ज़मीर-ए-अम्न इस धोके में नादाँ आ नहीं सकता
याक़ूब उस्मानी
ग़ज़ल
अपने हिस्से की मसर्रत भी अज़िय्यत है 'ज़मीर'
हर नफ़स पास-ए-ग़म-ए-हम-नफ़साँ रखते हैं
सय्यद ज़मीर जाफ़री
नज़्म
आदमी
दिल रहें हैं सौमा-ए-दस्तार रेहन-ए-मै-कदा
था ज़मीर 'जाफ़री' भी इक मज़ेदार आदमी
सय्यद ज़मीर जाफ़री
ग़ज़ल
अपनी फ़ितरत में भी रौशन होंगे लेकिन ऐ 'ज़मीर'
मेरी रातों से भी तारों ने चमक पाई बहुत
सय्यद ज़मीर जाफ़री
ग़ज़ल
'ज़मीर' इक क़ैद-ए-ना-महसूस को महसूस करता हूँ
किसी नादानी-ए-ज़ंजीर-ए-पा को देखता हूँ मैं
सय्यद ज़मीर जाफ़री
ग़ज़ल
ज़ब्त-ए-तूफ़ाँ की तबीअ'त ही का इक रुख़ है 'ज़मीर'
मौज आवाज़ बदल लेती है तूफ़ाँ होते