aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
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लेकिन तहसीलदार साहब और हेड-मास्टर साहब की नेक नियती यहीं तक महदूद न रही। अगर वह सिर्फ़ एक आ’म और मुहमल सा मश्विरा दे देते कि लड़के को लाहौर भेज दिया जाये तो बहुत ख़ूब था, लेकिन उन्होंने तो तफ़सीलात में दख़ल देना शुरु कर दिया और हॉस्टल की ज़िंदगी...
बाद के औक़ात से मा’लूम होता है कि भतीजे साहब मेरे हर ख़त को बेहद अदब-व-एहतिराम के साथ खोलते, बल्कि बा’ज़-बा’ज़ बातों से तो ज़ाहिर होता है कि उस इफ़्तेताही तक़रीब से पेशतर वो बाक़ायदा वज़ू भी कर लेते। ख़त को ख़ुद पढ़ते फिर दोस्तों को सुनाते, फिर अख़बारों के...
हम वफ़ादार नहीं तू भी तो दिलदार नहीं! लिहाज़ा हम तफ़सीलात से एह्तिराज़ करेंगे। हालाँकि दिल ज़रूर चाहता है कि ज़रा तफ़सील के साथ मिनजुम्ला दीगर मुश्किलात के इस सरासीमगी को बयान करें जो उस वक़्त महसूस होती है जब हमसे अज़ रूए हिसाब ये दरयाफ़्त करने को कहा जाये...
“जी हाँ, बल्कि इससे भी कुछ ज़्यादा, उसको इस बात का ग़म था कि अगर वो कोई मंज़र, कोई मर्द, कोई औरत सिर्फ़ एक नज़र देख ले तो उसे मिन-ओ-अ’न अपने अलफ़ाज़ में बयान कर सकता है जो कभी ग़लत नहीं होंगे और इसमें कोई शक नहीं कि उसका अंदाज़ा...
मेरे लिए जो तीन अदद सेब लाए थे वो खा चुकने के बाद जब उन्हें कुछ क़रार आया तो वो मशहूर ताज़ियती शे’र पढ़ा जिसमें उन ग़ुंचों पर हसरत का इज़हार किया गया है जो बन खिले मुरझा गए। मैं फ़ित्रतन रक़ीक़-उल-क़ल्ब वाक़े हुआ हूँ और तबीयत में ऐसी बातों...
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क्या शायरी की पहचान मुम्किन है? अगर हाँ, तो क्या अच्छी और बुरी शायरी को अलग अलग पहचानना मुम्किन है? अगर हाँ, तो पहचानने के ये तरीक़े मारुज़ी हैं या मोज़ूई? यानी क्या ये मुम्किन है कि कुछ ऐसे मेयार, ऐसी निशानियां, ऐसे ख़वास मुक़र्रर किए जाएं या दरयाफ़्त किए...
चारपाई एक ऐसी ख़ुदकफ़ील तहज़ीब की आख़िरी निशानी है जो नए तक़ाज़ों और जरूरतों से ओहदा बर आ होने के लिए नित नई चीज़ें ईजाद करने की क़ाइल न थी। बल्कि ऐसे नाज़ुक मवाक़े पर पुरानी में नई खूबियां दरयाफ़्त कर के मुस्कुरा देती थी। उस अहद की रंगारंग मजलिसी...
merii tafsiilaat me.n jaane kaa mauqa.a ab kahaa.nab to aasaa.n hai samajhnaa muKHtasar baaqii huu.n mai.n
“बहुत ज़रूरी थे... इसलिए कि ख़ाविंद के फेफड़ों के मुक़ाबले में दुल्हन के जहेज़ की तफ़सीलात बहुत अहम थीं, उसके बालों की अफ़्शां, उसके गालों पर लगाया गया ग़ाज़ा, उसके होंटों की सुर्ख़ी, उसकी ज़रबफ्त की क़मीस और जाने क्या क्या... ये तमाम इत्तिलाएं पहुंचाना वाक़ई अशद ज़रूरी था वर्ना...
अंदर जाकर उसने एक एयरकंडीशंड क़ब्र में झाँका। ये एक Split Level क़ब्र थी। अंदर रंगीन टेलीविज़न के सामने ज़िंदा लोग बैठे शराब पी रहे थे। टेलीविज़न पर सैंटर्ल यूरोपियन नीली चेहरे वाली औ’रत “लिली मारलीन” गा रही थी। उसने 1916 के फ़ैशन का लिबास पहन रखा था। गड़गड़ाहट के...
धौल-धप्पा उस सरापा-नाज़ का शेवा नहीं कौन कहता है कि मिर्ज़ा साहिब ना-आक़िबत-अँदेश थे। देखिए किस तरह अपने छोटे भाई असद को मश्वरा लेने के बहाने नसीहत करते हैं......
(लिहाफ़) “टिक-टिक, टिक-टिक। घड़ी की तरह उसका दिल हिलने लगा।” ...
ये कह कर वो कुछ देर के लिए चुप हो गई लेकिन फिर करवट बदल कर कहने लगी, “मेरे ख़यालात पहले ऐसे नहीं थे। सच पूछिए तो मुझे सोचने का वक़ूफ़ ही नहीं था, लेकिन इस क़हत ने मुझे एक बिल्कुल नई दुनिया में फेंक दिया।” रुक कर एक दम...
مزید تفصیلات کی ضرورت نہیں معلوم ہوتی۔ ’بال جبریل‘ کی صرف ایک نظم اور یہاں درج کی جاتی ہے۔ جس جوش و خروش، جس جذبہ صادق، جس خلوص کی یہ آئینہ دار ہے، اس کا اندازہ اہل نظر ہی کر سکتے ہیں۔ فرمان خدا فرشتوں کے نام...
‘‘हाँ अच्छी है लेकिन कुछ ऐसी अच्छी भी नहीं। मुसन्निफ़ से दौर-ए-जदीद का नुक़्ता-ए-नज़र कुछ निभ न सका, लेकिन फिर भी बा'ज़ नुक्ते निराले हैं। बुरी नहीं बुरी नहीं।" कनखियों से मेबल की तरफ़ देखता गया लेकिन उसे मेरी रियाकारी बिल्कुल मा'लूम न होने पाई। ड्रामे के मुता'ल्लिक़ कहा करता...
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