aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
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दो तीन दिन के बा’द जब इस जश्न की थकावट उतर गई तो ये बेस्वाएँ साज़-ओ-सामान की फ़राहमी और मकानों की आराइश में मसरूफ़ हो गईं। झाड़, फ़ानूस, ज़रूफ़-ए-बिल्लौरी, क़द-ए-आदम आईने, निवाड़ी पलंग, तस्वीरें और क़तआत-ए-सुनहरी, चौकठों में जुड़े हुए लाए गए और क़रीने से कमरों में लगाए गए और कोई आठ रोज़ में जा कर ये मकान कील कांटे से लैस हुए। ये औरतें दिन का बेश्तर हिस्सा तो ...
थकावट और नींद के शदीद ग़लबे के बाइ’स मेरी कमर टूट रही थी और मैं चाहता था कि थोड़ी देर के लिए बैठ जाऊं। बंद दूकानों के थड़े मुझे नशिस्त पेश कररहे थे मगर मैंने उनकी दा’वत क़बूल न की। चलता-चलता पुल की संगीन मुंडेर पर चढ़ कर बैठ गया। कुशादा बाज़ार बिल्कुल ख़ामोश था, आमद-ओ-रफ़्त क़रीब-क़रीब बंद थी, अलबत्ता कभी कभी दूर से मोटर के हॉर्न की रोनी आवाज़ ख़ामोश फ़िज़ा में ...
हो कर असीर दाबते हैं राहज़न के पांवजब उनकी थकावट दूर हो गई तो उन्होंने मिर्ज़ा से कहा कि हमें अपने घर लेकर चल। मिर्ज़ा ने ऐसा ही किया। वहां पहुंच कर उन लोगों ने मिर्ज़ा का सारा असासा उड़ा लिया और चम्पत हो गए। मिर्ज़ा उनके इस बरताव से बहुत ख़ुश हुए और चादर में मुँह लपेट कर सो रहे। सुबह बिस्तर से उठते ही ये शे’र गुनगुनाने लगे,
प्लेटफार्म पर और होटल में थकावट के बावजूद वो जानदार औरत थी मगर जूंही वो इस कमरे में जहां मैं सिर्फ़ बनयान और पाजामा पहने चाय पी रहा था दाख़िल हुई तो उसकी तरफ़ देख कर मुझे ऐसा लगा जैसे कोई बहुत ही परेशान और ख़स्ताहाल औरत मुझसे मिलने आई है।जब मैंने उसे प्लेटफार्म पर देखा था तो वो ज़िंदगी से भरपूर थी लेकिन जब प्रभात नगर के नंबर ग्यारह फ़्लैट में आई तो मुझे महसूस हुआ कि या तो इसने ख़ैरात में अपना दस पंद्रह औंस ख़ून दे दिया है या इसका इस्क़ात होगया है।
शाम को रहमान लौट आया। उसने आते ही माँ से सुंदर जाट के डाका के मुतअ’ल्लिक़ पूछा। इस पर माई जीवां ने कहा, “सुंदर जाट तो नहीं आया बेटा, पर नीती कहीं ग़ायब हो गई है... ऐसी कि कुछ पता ही नहीं चलता।”रहमान को ऐसा महसूस हुआ कि उसकी टांगों में दस कोस और चलने की थकावट पैदा होगई है। वो अपनी माँ के पास बैठ गया, उसका चेहरा ख़ौफ़नाक तौर पर ज़र्द था।
थकावटتھکاوٹ
tired, fatigue
लाहौर से बाबू हरगोपाल आए तो हामिद घर का रहा न घाट का। उन्होंने आते ही हामिद से कहा, “लो, भई फ़ौरन एक टैक्सी का बंदोबस्त करो।”हामिद ने कहा, “आप ज़रा तो आराम कर लीजिए। इतना लंबा सफ़र तय करके यहां आए हैं। थकावट होगी।”
“जी हाँ।”“वो क्या दिन थे जब हमारी शादी हुई थी। तुम्हें मेरी हर बात का कितना ख़याल रहता था। हम बाहम किस क़दर शेर-ओ-शक्कर थे... मगर अब तुम कभी सोने का बहाना कर देती हो। कभी थकावट का उज़्र पेश कर देती और कभी दोनों कान बंद कर लेती हो कुछ सुनती ही नहीं।”
आ’म ख़याल था कि आज़ादी की मंज़िल अब सिर्फ़ दो हाथ ही दूर है, लेकिन फ़िरंगी सियासतदानों ने इस तहरीक का दूध उबलने दिया और जब हिंदुस्तान के बड़े लीडरों के साथ कोई समझौता हुआ तो ये तहरीक ठंडी लस्सी में तबदील हो गई।आज़ादी के दीवाने जेलों से बाहर निकले तो क़ैद की सऊ’बतें भूलने और अपने बिगड़े हुए कारोबार संवारने में मशग़ूल हो गए। शहज़ादा ग़ुलाम अली सात महीने के बाद ही बाहर आगया था। गो उस वक़्त पहला सा जोश नहीं था। फिर भी अमृतसर के स्टेशन पर लोगों ने उसका इस्तक़बाल किया। उसके ए’ज़ाज़ में तीन-चार दा’वतें और जलसे भी हुए। मैं उन सब में शरीक था। मगर ये महफ़िलें बिल्कुल फीकी थीं। लोगों पर अब एक अ’जीब क़िस्म की थकावट तारी थी जैसे एक लंबी दौड़ में अचानक दौड़ने वालों से कह दिया गया था। ठहरो, ये दौड़ फिर से शुरू होगी और अब जैसे ये दौड़ने वाले कुछ देर हांपने के बाद दौड़ के मुक़ाम-ए-आग़ाज़ की तरफ़ बड़ी बेदिली के साथ वापस आरहे थे।
kuchh taqaaze hai.n kuchh udhaarii haiumr kaa bojh hai thakaavaT hai
दोपहर के खाने से फ़ारिग़ हो कर फ़य्याज़, हैदरी ख़ाँ, असग़री और दोनों लड़कियाँ जल्दी-जल्दी असबाब बाँधने में मसरूफ़ हो गईं। पिछले दस बरस में न जाने क्या-क्या ज़रूरी और ग़ैर-ज़रूरी सामान इकट्ठा हो गया था जिसका छाँटना मुश्किल था। सलाह ये ठहरी कि नए मकान में पहुँच कर छाँट लेंगे। फ़िलहाल तो सारा का सारा जूँ का तूँ वहाँ पहुँचा दिया जाए। फिर भी सामान बाँधत...
“अभी सुस्ताने का मुक़ाम नहीं आया। मेरे इरादों में थकावट उस दिन पैदा होगी जब तुम्हें घर की याद सताएगी। और मुझे मजबूर करोगी कि तुम्हें घर छोड़ आऊँ लेकिन घर हमारे लिए उस वक़्त तक तंग है जब तक हमें सोचने और समझने की आज़ादी नहीं दी जाती।”“घर की बात करते हो?”
“ज़िंदगी का सिर्फ़ एक राज़ है और वो रज्ज़ है, जो आगे बढ़ने, हमला करने, मरने और मारने का जज़्बा पैदा करता है। इसके सिवा बाक़ी तमाम रागनियां फ़ुज़ूल हैं जो आ’ज़ा पर थकावट तारी करती हैं।”उसका दिल शबाब के बावजूद इश्क़-ओ-मोहब्बत से ख़ाली था। उसकी नज़रों के सामने से हज़ार-हा ख़ूबसूरत लड़कियां और औरतें गुज़र चुकी थीं, मगर उनमें से किसी एक ने भी उसके दिल पर असर न किया था। वो कहा करता था, “इस पत्थर में इश्क़ की जोंक नहीं लग सकती!”
janam janam kii thakaavaT hai mere siine me.njise mai.n apne suKHan me.n utaar letii huu.n
कीकू की माँ के लबों पर तबस्सुम नहीं रहा। सिर्फ़ उसका साया रह गया। हल्की सी सुर्ख़ी से इसका रंग सपेदी और सपेदी से ज़र्दी और स्याही माइल हो गया और वो हैरत से क्लॉक की टिक-टिक को सुनने लगी। दर्शी के लिए वो मामूली टिक-टिक हथौड़े की ज़र्बों से कम न थी। उस्ताद की इज़्ज़त मल्हूज़-ए-ख़ातिर न होती तो वो पत्थर मार कर उसकी टिक-टिक को रोक देती... कीकू की माँ सोच रही...
उसकी ये हरकात... या’नी... या’नी... मेरी तरफ़ उसका तीन बार मुड़ मुड़ कर देखना... क्या उसकी मुस्कुराहट के साथ मेरे तबस्सुम के कुछ ज़र्रे तो नहीं चिमट कर नहीं रह गए थे?इस ख़याल ने मेरी नब्ज़ की धड़कन तेज़ कर दी। थोड़ी देर के बाद मुझे थकावट सी महसूस होने लगी। मेरे पीछे झाड़ियों में जंगल के पंछी गीत बरसा रहे थे। हवा में खुली हुई मोसीक़ी मुझे किस क़दर प्यारी मालूम हुई। न जाने मैं कितने घूँट इस राग मिली हवा के ग़टाग़ट पी गया।
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