aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "'maz.harii'"
दिल ना-उमीद तो नहीं नाकाम ही तो हैलम्बी है ग़म की शाम मगर शाम ही तो है
जलाने वाले जलाते ही हैं चराग़ आख़िरये क्या कहा कि हवा तेज़ है ज़माने की
तुम किसी के भी हो नहीं सकतेतुम को अपना बना के देख लिया
हम मोहब्बत का सबक़ भूल गएतेरी आँखों ने पढ़ाया क्या है
होने दो चराग़ाँ महलों में क्या हम को अगर दीवाली हैमज़दूर हैं हम मज़दूर हैं हम मज़दूर की दुनिया काली है
जाने किस ख़्वाब-ए-परेशाँ का है चक्कर साराबिखरा बिखरा हुआ रहता है मिरा घर सारा
ब-क़द्र-ए-पैमाना-ए-तख़य्युल सुरूर हर दिल में है ख़ुदी काअगर न हो ये फ़रेब-ए-पैहम तो दम निकल जाए आदमी का
नज़र झुक रही है ख़मोशी है लब परहया है अदा है कि अन-बन है क्या है
आया ये कौन साया-ए-ज़ुल्फ़-ए-दराज़ मेंपेशानी-ए-सहर का उजाला लिए हुए
हम को बचपन ही से इक शौक़ था बर्बादी सेनाम लिख लिख के मिटाते थे ज़मीं पर अपना
इन्ही हैरत-ज़दा आँखों से देखे हैं वो आँसू भीजो अक्सर धूप में मेहनत की पेशानी से ढलते हैं
रब्त है उस को ज़माने से बहुत सुनता हूँकोई तरकीब करूँ मैं भी ज़माना हो जाऊँ
हम बने थे तबाह होने कोआप का इश्क़ तो बहाना था
किसे ख़बर थी कि ले कर चिराग़-मुस्तफ़वीजहाँ में आग लगाती फिरेगी बू-लहबी
हम हैं उन से वो ग़ैर से मायूसक्या मोहब्बत किसी को रास नहीं
बुतों को तोड़ के ऐसा ख़ुदा बनाना क्याबुतों की तरह जो हम-शक्ल आदमी का हो
बोझ दिल पर है नदामत का तो ऐसा कर लोमेरे सीने से किसी और बहाने लग जाओ
क्या तअज्जुब है जो यारों ने रिफ़ाक़त छोड़ीबैठता कौन है गिरती हुई दीवार के पास
तआक़ुब में है मेरे याद किस कीमैं किस को भूल जाना चाहता हूँ
कौन सी दुनिया में हूँ किस की निगहबानी में हूँज़िंदगी है सख़्त मुश्किल फिर भी आसानी में हूँ
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