aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
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हम आह भी करते हैं तो हो जाते हैं बदनामवो क़त्ल भी करते हैं तो चर्चा नहीं होता
दिल धड़कने का सबब याद आयावो तिरी याद थी अब याद आया
ये इश्क़ नहीं आसाँ इतना ही समझ लीजेइक आग का दरिया है और डूब के जाना है
ऐ मोहब्बत तिरे अंजाम पे रोना आयाजाने क्यूँ आज तिरे नाम पे रोना आया
हम तो समझे थे कि हम भूल गए हैं उन कोक्या हुआ आज ये किस बात पे रोना आया
कभी ख़ुद पे कभी हालात पे रोना आयाबात निकली तो हर इक बात पे रोना आया
मैं रहा उम्र भर जुदा ख़ुद सेयाद मैं ख़ुद को उम्र भर आया
कौन रोता है किसी और की ख़ातिर ऐ दोस्तसब को अपनी ही किसी बात पे रोना आया
आग थे इब्तिदा-ए-इश्क़ में हमअब जो हैं ख़ाक इंतिहा है ये
आह को चाहिए इक उम्र असर होते तककौन जीता है तिरी ज़ुल्फ़ के सर होते तक
कितने ऐश से रहते होंगे कितने इतराते होंगेजाने कैसे लोग वो होंगे जो उस को भाते होंगे
दिल पागल है रोज़ नई नादानी करता हैआग में आग मिलाता है फिर पानी करता है
यूँ तो हर शाम उमीदों में गुज़र जाती हैआज कुछ बात है जो शाम पे रोना आया
दिल के फफूले जल उठे सीने के दाग़ सेइस घर को आग लग गई घर के चराग़ से
सदा ऐश दौराँ दिखाता नहींगया वक़्त फिर हाथ आता नहीं
मेरे सीने में नहीं तो तेरे सीने में सहीहो कहीं भी आग लेकिन आग जलनी चाहिए
कौन आएगा यहाँ कोई न आया होगामेरा दरवाज़ा हवाओं ने हिलाया होगा
उठ कर तो आ गए हैं तिरी बज़्म से मगरकुछ दिल ही जानता है कि किस दिल से आए हैं
उफ़ वो मरमर से तराशा हुआ शफ़्फ़ाफ़ बदनदेखने वाले उसे ताज-महल कहते हैं
सो देख कर तिरे रुख़्सार ओ लब यक़ीं आयाकि फूल खिलते हैं गुलज़ार के अलावा भी
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