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शेर
मैं तो 'मुनीर' आईने में ख़ुद को तक कर हैरान हुआ
ये चेहरा कुछ और तरह था पहले किसी ज़माने में
मुनीर नियाज़ी
शेर
ख़ुद अपनी शक्ल देखे एक मुद्दत हो गई मुझ को
उठा लेता है पत्थर टूटे आईने नहीं देता