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शेर
ये आख़िर है ये आख़िर है ये आख़िर है ये आख़िर
उस के हर इक ज़ुल्म को मैं ने आख़िर समझा भूल हुई
शुभम शब
शेर
फ़र्बा-तनी की फ़िक्र में नादाँ हैं रोज़-ओ-शब
आख़िर को जानते नहीं है ये ग़िज़ा-ए-मर्ग