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शेर
अगर दर्द-ए-मोहब्बत से न इंसाँ आश्ना होता
न कुछ मरने का ग़म होता न जीने का मज़ा होता
चकबस्त बृज नारायण
शेर
जो मैं सर-ब-सज्दा हुआ कभी तो ज़मीं से आने लगी सदा
तिरा दिल तो है सनम-आश्ना तुझे क्या मिलेगा नमाज़ में
अल्लामा इक़बाल
शेर
मोमिन ख़ाँ मोमिन
शेर
कहूँ तो किस से कहूँ अपना दर्द-ए-दिल मैं ग़रीब
न आश्ना न मुसाहिब न हम-नशीं कोई