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शेर
तू जुगनू है फ़क़त रातों के दामन में बसेरा कर
मैं सूरज हूँ तू मुझ से आश्नाई कर नहीं सकता
अफ़ज़ल इलाहाबादी
शेर
निगाह-ए-मेहरबाँ उठती तो है सब की तरफ़ लेकिन
नहीं वाक़िफ़ अभी सब लोग रम्ज़-ए-आश्नाई से
ख़लील-उर-रहमान आज़मी
शेर
वो मिले तो बे-तकल्लुफ़ न मिले तो बे-इरादा
न तरीक़-ए-आश्नाई न रुसूम-ए-जाम-ओ-बादा
मोहम्मद दीन तासीर
शेर
अगर दर्द-ए-मोहब्बत से न इंसाँ आश्ना होता
न कुछ मरने का ग़म होता न जीने का मज़ा होता
चकबस्त बृज नारायण
शेर
इस आलम-ए-वीराँ में क्या अंजुमन-आराई
दो रोज़ की महफ़िल है इक उम्र की तन्हाई