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शेर
माँगो समुंदरों से न साहिल की भीक तुम
हाँ फ़िक्र ओ फ़न के वास्ते गहराई माँग लो
हसन नज्मी सिकन्दरपुरी
शेर
जो अहल-ए-दिल हैं अलग हैं वो अहल-ए-ज़ाहिर से
न मैं हूँ शैख़ की जानिब न बरहमन की तरफ़
नज़्म तबातबाई
शेर
ऐ 'मुसहफ़ी' उस्ताद-ए-फ़न-ए-रेख़्ता-गोई
तुझ सा कोई आलम को मैं छाना नहीं मिलता
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
शेर
अब उन की ख़्वाब-गाहों में कोई आवाज़ मत करना
बहुत थक-हार कर फ़ुटपाथ पर मज़दूर सोए हैं
नफ़स अम्बालवी
शेर
चश्म-ए-लैला का जो आलम है उन्हों की चश्म में
देखे है दो दो पहर मजनूँ ग़ज़ालाँ की तरफ़
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
शेर
दिल को होना है फ़ना रहना है क़ाएम अक़्ल को
हस्ती-ए-आदम कहाँ जाए ये फ़ितरत छोड़ कर