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शेर
आली शेर हो या अफ़्साना या चाहत का ताना बाना
लुत्फ़ अधूरा रह जाता है पूरी बात बता देने से
जलील ’आली’
शेर
शबाब-ए-हुस्न है बर्क़-ओ-शरर की मंज़िल है
ये आज़माइश-ए-क़ल्ब-ओ-नज़र की मंज़िल है