aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "تقریب"
ईद का चाँद जो देखा तो तमन्ना लिपटीउन से तक़रीब-ए-मुलाक़ात का रिश्ता निकला
लो डूबतों ने देख लिया नाख़ुदा को आजतक़रीब कुछ तो बहर-ए-मुलाक़ात हो गई
सीखे हैं मह-रुख़ों के लिए हम मुसव्वरीतक़रीब कुछ तो बहर-ए-मुलाक़ात चाहिए
आओ तक़रीब-ए-रू-नुमाई करेंपाँव में एक आबला हुआ है
वो जिस के हाथ से तक़रीब-ए-दिल-नुमाई थीअभी वो लम्हा-ए-मौजूद में नहीं आया
कोट और पतलून जब पहना तो मिस्टर बन गयाजब कोई तक़रीर की जलसे में लीडर बन गया
मोहब्बत, हिज्र, नफ़रत मिल चुकी हैमैं तक़रीबन मुकम्मल हो चुका हूँ
आगही दाम-ए-शुनीदन जिस क़दर चाहे बिछाएमुद्दआ अन्क़ा है अपने आलम-ए-तक़रीर का
देखना तक़रीर की लज़्ज़त कि जो उस ने कहामैं ने ये जाना कि गोया ये भी मेरे दिल में है
हर एक कूचा है साकित हर इक सड़क वीराँहमारे शहर में तक़रीर कर गया ये कौन
दिल टूट के ही आख़िर बनता है किसी क़ाबिलतख़रीब के पर्दे में ता'मीर नज़र आई
मुझ को तख़रीब भी नहीं आईतोड़ता कुछ हूँ टूटता कुछ है
उलझा है मगर ज़ुल्फ़ में तक़रीर का लच्छासुलझी हुई हम ने न सुनी बात तुम्हारी
तख़रीब के पर्दे में ही ता'मीर है साक़ीशीशा कोई पिघला है तो पैमाना बना है
कहो क्या बात करती है कभी सहरा की ख़ामोशीकहा उस ख़ामुशी में भी तो इक तक़रीर होती है
मैं भी इक मअनी-ए-पेचीदा अजब था कि 'हसन'गुफ़्तुगू मेरी न पहुँची कभी तक़रीर तलक
पी के ऐ वाइज़ नदामत है मुझेपानी पानी हूँ तिरी तक़रीर से
कच्ची क़ब्रों पर सजी ख़ुशबू की बिखरी लाश परख़ामुशी ने इक नए अंदाज़ में तक़रीर की
शिकवा सुन कर जो मिज़ाज-ए-बुत-ए-बद-ख़ू बदलाहम ने भी साथ ही तक़रीर का पहलू बदला
रस घोलते शीरीं लफ़्ज़ों की तासीर से ख़ुशबू आती हैअंदाज़-ए-बयाँ से लहजे से तक़रीर से ख़ुशबू आती है
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