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शेर
ये जो रौशनी है कलाम में कि बरस रही है तमाम में
मुझे सब्र ने ये समर दिया मुझे ज़ब्त ने ये हुनर दिया
सरवत हुसैन
शेर
बे-समर पेड़ों को चूमेंगे सबा के सब्ज़ लब
देख लेना ये ख़िज़ाँ बे-दस्त-ओ-पा रह जाएगी
अमजद इस्लाम अमजद
शेर
अज़ीज़ान-ए-वतन को ग़ुंचा ओ बर्ग ओ समर जाना
ख़ुदा को बाग़बाँ और क़ौम को हम ने शजर जाना
चकबस्त बृज नारायण
शेर
सितमगर जब कोई ताज़ा सितम ईजाद करते हैं
तो बहर-इम्तिहाँ पहले हमीं को याद करते हैं