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शेर
बाँध के सफ़ हों सब खड़े तेग़ के साथ सर झुके
आज तो क़त्ल-गाह में धूम से हो नमाज़-ए-इश्क़
सहर भोपाली
शेर
फूल जब झड़ने लगे रंगीं-बयानी से मिरी
रह गई हैरत से बुलबुल खोल कर मिन्क़ार को