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शेर
अमीर ख़ुसरो
शेर
सलीक़ा जिन को होता है ग़म-ए-दौराँ में जीने का
वो यूँ शीशे को हर पत्थर से टकराया नहीं करते
नुशूर वाहिदी
शेर
कुछ ग़म-ए-जानाँ कुछ ग़म-ए-दौराँ दोनों मेरी ज़ात के नाम
एक ग़ज़ल मंसूब है उस से एक ग़ज़ल हालात के नाम
मलिकज़ादा मंज़ूर अहमद
शेर
मुझे आँखें दिखाएगी भला क्या गर्दिश-ए-दौराँ
मिरी नज़रों ने देखा है तिरा ना-मेहरबाँ होना
अलीम अख़्तर मुज़फ़्फ़र नगरी
शेर
रोज़ ओ शब फ़ुर्क़त-ए-जानाँ में बसर की हम ने
तुझ से कुछ काम न ऐ गर्दिश-ए-दौराँ निकला