aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "صائب"
मिली तो उन से मगर फ़ुर्सत-ए-नज़र न मिलीफिर उस के बा'द ख़ुद अपनी हमें ख़बर न मिली
आ तुझे मेरी क़सम मुश्किल मिरी आसान करज़ीस्त का हर मरहला दुश्वार है तेरे बग़ैर
निगाह में कोई मंज़िल न कोई सम्त-ए-सफ़रहवा ख़मोश है कश्ती का बादबाँ चुप है
क़दम बढ़ा कि अभी दूर है तिरी मंज़िलशिकस्त-ए-आबला-पाई है ख़ार की हद तक
मिरा मक़ाम हर इक दिल में है जुदागानाअगर यक़ीन नहीं हूँ तो एहतिमाल हूँ मैं
झूट बोला है तो क़ाएम भी रहो उस पर 'ज़फ़र'आदमी को साहब-ए-किरदार होना चाहिए
'मीर' साहब तुम फ़रिश्ता हो तो होआदमी होना तो मुश्किल है मियाँ
आईना देख अपना सा मुँह ले के रह गएसाहब को दिल न देने पे कितना ग़ुरूर था
'ज़फ़र' आदमी उस को न जानिएगा वो हो कैसा ही साहब-ए-फ़हम-ओ-ज़काजिसे ऐश में याद-ए-ख़ुदा न रही जिसे तैश में ख़ौफ़-ए-ख़ुदा न रहा
कहीं ज़मीं से तअल्लुक़ न ख़त्म हो जाएबहुत न ख़ुद को हवा में उछालिए साहिब
आँखें दिखलाते हो जोबन तो दिखाओ साहबवो अलग बाँध के रक्खा है जो माल अच्छा है
धमका के बोसे लूँगा रुख़-ए-रश्क-ए-माह काचंदा वसूल होता है साहब दबाव से
तुझे किताब से मुमकिन नहीं फ़राग़ कि तूकिताब-ख़्वाँ है मगर साहिब-ए-किताब नहीं
मौत की पहली अलामत साहिबयही एहसास का मर जाना है
लगे मुँह भी चिढ़ाने देते देते गालियाँ साहबज़बाँ बिगड़ी तो बिगड़ी थी ख़बर लीजे दहन बिगड़ा
'मीर'-साहिब ज़माना नाज़ुक हैदोनों हाथों से थामिए दस्तार
ख़ैर दोज़ख़ में मय मिले न मिलेशैख़-साहब से जाँ तो छुटेगी
दिल दिया जिस ने किसी को वो हुआ साहिब-ए-दिलहाथ आ जाती है खो देने से दौलत दिल की
मुझ को शायर न कहो 'मीर' कि साहब मैं नेदर्द ओ ग़म कितने किए जम्अ तो दीवान किया
हसीनों से फ़क़त साहिब-सलामत दूर की अच्छीन उन की दोस्ती अच्छी न उन की दुश्मनी अच्छी
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