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शेर
बद की सोहबत में मत बैठो इस का है अंजाम बुरा
बद न बने तो बद कहलाए बद अच्छा बदनाम बुरा
इस्माइल मेरठी
शेर
वो नादाँ हैं जो कहते हैं असर सोहबत का होता है
गुलों में निकहत-ए-गुल है कहाँ ख़ुश-बू है काँटों में
अज्ञात
शेर
अबस इन शहरियों में वक़्त अपना हम किए ज़ाए
किसी मजनूँ की सोहबत बैठ दीवाने हुए होते
सिराज औरंगाबादी
शेर
ख़लल इक पड़ गया नाहक़ गुल ओ बुलबुल की सोहबत में
अबस खोला था तू ने बाग़ में ऐ गुल बदन अपना
जुरअत क़लंदर बख़्श
शेर
अदम वालों की सोहबत से भी नफ़रत हो गई अब तो
कोई वीराना अब सू-ए-अदम आबाद करते हैं
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
शेर
आज हमें और ही नज़र आता है कुछ सोहबत का रंग
बज़्म है मख़मूर और साक़ी नशे में चूर है