aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
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दुनिया में हूँ दुनिया का तलबगार नहीं हूँबाज़ार से गुज़रा हूँ ख़रीदार नहीं हूँ
एक बोसे के तलबगार हैं हमऔर माँगें तो गुनहगार हैं हम
दुनिया ओ आख़िरत में तलबगार हैं तिरेहासिल तुझे समझते हैं दोनों जहाँ में हम
या रब तिरी रहमत का तलबगार है ये भीथोड़ी सी मिरे शहर को भी आब-ओ-हवा दे
कैसी जन्नत के तलबगार हैं तू जानता हैतेरी लिक्खी हुई दुनिया को मिटाते हुए हम
हम तो मंज़िल के तलबगार थे लेकिन मंज़िलआगे बढ़ती है गई राहगुज़र की सूरत
ख़ूब पहचान लो असरार हूँ मैंजिंस-ए-उल्फ़त का तलबगार हूँ मैं
उस को चाहा था कभी ख़ुद की तरहआज ख़ुद अपने तलबगार हैं हम
क़दमों में साए की तरह रौंदे गए हैं हमहम से ज़ियादा तेरा तलबगार कौन है
मेहनत हो मुसीबत हो सितम हो तो मज़ा हैमिलना तिरा आसाँ है तलबगार बहुत हैं
दरिया-ए-शराब उस ने बहाया है हमेशासाक़ी से जो कश्ती के तलबगार हुए हैं
ज़हे-नसीब कि दुनिया ने तेरे ग़म ने मुझेमसर्रतों का तलबगार कर के छोड़ दिया
उम्र सब ज़ौक़-ए-तमाशा में गुज़ारी लेकिनआज तक ये न खुला किस के तलबगार हैं हम
लाई है कहाँ मुझ को तबीअत की दो-रंगीदुनिया का तलबगार भी दुनिया से ख़फ़ा भी
मय-कशो देर है क्या दौर चले बिस्मिल्लाहआई है शीशा-ओ-साग़र की तलबगार घटा
इस ख़ूबी-ए-क़िस्मत पे मुझे नाज़ बहुत हैवो शख़्स मिरी जाँ का तलबगार हुआ है
ज़ाहिदों से न बनी हश्र के दिन भी या-रबवो खड़े हैं तिरी रहमत के तलबगार जुदा
फ़ख़्र ज़ेबा है कि मुद्दत पे कहीं जा के मिरीअब तलबगार ख़ुदा की ये ख़ुदाई हुई है
मैं तो तालिब दिल से हूँगा दीन कादौलत-ए-दुनिया मुझे मतलूब नहीं
हमें हर वक़्त ये एहसास दामन-गीर रहता हैपड़े हैं ढेर सारे काम और मोहलत ज़रा सी है
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