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शेर
बुलबुल को बाग़बाँ से न सय्याद से गिला
क़िस्मत में क़ैद लिक्खी थी फ़स्ल-ए-बहार में
बहादुर शाह ज़फ़र
शेर
मुज़्तर ख़ैराबादी
शेर
हर पत्ती बोझल हो के गिरी सब शाख़ें झुक कर टूट गईं
उस बारिश ही से फ़स्ल उजड़ी जिस बारिश से तय्यार हुई
महशर बदायुनी
शेर
फ़स्ल तुम्हारी अच्छी होगी जाओ हमारे कहने से
अपने गाँव की हर गोरी को नई चुनरिया ला देना
रईस फ़रोग़
शेर
कहाँ बच कर चली ऐ फ़स्ल-ए-गुल मुझ आबला-पा से
मिरे क़दमों की गुल-कारी बयाबाँ से चमन तक है
मजरूह सुल्तानपुरी
शेर
जिगर मुरादाबादी
शेर
चराग़-ए-ज़िंदगी होगा फ़रोज़ाँ हम नहीं होंगे
चमन में आएगी फ़स्ल-ए-बहाराँ हम नहीं होंगे
अब्दुल मजीद सालिक
शेर
गए मौसम में मैं ने क्यूँ न काटी फ़स्ल ख़्वाबों की
मैं अब जागी हूँ जब फल खो चुके हैं ज़ाइक़ा अपना
अज़ीज़ बानो दाराब वफ़ा
शेर
किताबों से निकल कर तितलियाँ ग़ज़लें सुनाती हैं
टिफ़िन रखती है मेरी माँ तो बस्ता मुस्कुराता है