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शेर
कुछ तो है बात जो आती है क़ज़ा रुक रुक के
ज़िंदगी क़र्ज़ है क़िस्तों में अदा होती है
क़मर जलालाबादी
शेर
मैं सिसकता रह गया और मर गए फ़रहाद ओ क़ैस
क्या उन्ही दोनों के हिस्से में क़ज़ा थी मैं न था
बहादुर शाह ज़फ़र
शेर
दौर-ए-हयात आएगा क़ातिल क़ज़ा के ब'अद
है इब्तिदा हमारी तिरी इंतिहा के ब'अद
मौलाना मोहम्मद अली जौहर
शेर
तू जिस के ख़्वाब में आया हो वक़्त-ए-सुब्ह सनम
नमाज़-ए-सुब्ह को किस तरह वो क़ज़ा न करे