aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "مرحبا"
रहे न जान तो क़ातिल को ख़ूँ-बहा दीजेकटे ज़बान तो ख़ंजर को मरहबा कहिए
किया ज़िब्ह क़ातिल ने रुक रुक के ऐसाज़बाँ थक गई मरहबा कहते कहते
मोअज़्ज़िन मर्हबा बर-वक़्त बोलातिरी आवाज़ मक्के और मदीने
फैला फ़ज़ा में नग़्मा-ए-ज़ंजीर-ए-मर्हबाज़िंदाँ में घुट के रह न सकी ज़िंदगी की बात
दिल की वीरानी का क्या मज़कूर हैये नगर सौ मर्तबा लूटा गया
तलाश-ए-रिज़्क़ का ये मरहला अजब है कि हमघरों से दूर भी घर के लिए बसे हुए हैं
मिटा दे अपनी हस्ती को अगर कुछ मर्तबा चाहेकि दाना ख़ाक में मिल कर गुल-ओ-गुलज़ार होता है
हज़ार मर्तबा बेहतर है बादशाही सेअगर नसीब तिरे कूचे की गदाई हो
तअल्लुक़ तोड़ने में पहल मुश्किल मरहला थाचलो हम ने तुम्हारा बोझ हल्का कर दिया है
इश्क़ का अब मर्तबा पहुँचा मुक़ाबिल हुस्न केबन गए बुत हम भी आख़िर उस सनम की याद में
मर्तबा आज भी ज़माने मेंप्यार से आजिज़ी से मिलता है
बारिश की बहुत तेज़ हवा में कहीं मुझ कोदरपेश था इक मरहला जलने की तरह का
हथेली से ठंडा धुआँ उठ रहा हैयही ख़्वाब हर मर्तबा देखती हूँ
ख़बर नहीं है मिरे बादशाह को शायदहज़ार मर्तबा आज़ाद ये ग़ुलाम हुआ
मैं संग-ए-रह नहीं जो उठा कर तू फेंक देमैं ऐसा मरहला हूँ जो सौ बार आएगा
बाक़ी अभी है कर्ब का इक और मरहलामहसूस जो किया है उसे सोचना भी है
मैं ख़ुद को देखता हूँ और भी हिक़ारत सेजब अपना मर्तबा तस्लीम करने लगता हूँ
ये मरहला भी किसी इम्तिहाँ से कम तो नहींवो शख़्स मुझ पे बहुत ए'तिबार करता है
भटक के कोई गया दैर को कोई का'बेअजीब भूल-भुलय्याँ है मरहला दिल का
सफ़र में इश्क़ के इक ऐसा मरहला आयावो ढूँडता था मुझे और खो गया था मैं
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