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शेर
है ख़ुशी अपनी वही जो कुछ ख़ुशी है आप की
है वही मंज़ूर जो कुछ आप को मंज़ूर हो
मिर्ज़ा मासिता बेग मुंतही
शेर
बोसा जो माँगा बज़्म में फ़रमाया यार ने
ये दिन दहाड़े आए हैं पगड़ी उतारने
मिर्ज़ा मासिता बेग मुंतही
शेर
मुझ सा आशिक़ आप सा माशूक़ तब होवे नसीब
जब ख़ुदा इक दूसरा अर्ज़-ओ-समा पैदा करे
मिर्ज़ा मासिता बेग मुंतही
शेर
दुनिया का माल मुफ़्त में चखने के वास्ते
हाथ आया ख़ूब शैख़ को हीला नमाज़ का
मिर्ज़ा मासिता बेग मुंतही
शेर
जिस क़दर वो मुझ से बिगड़ा मैं भी बिगड़ा उस क़दर
वो हुआ जामे से बाहर मैं भी नंगा हो गया