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शेर
अनोखी वज़्अ' है सारे ज़माने से निराले हैं
ये आशिक़ कौन सी बस्ती के या-रब रहने वाले हैं
अल्लामा इक़बाल
शेर
बनावट वज़्अ'-दारी में हो या बे-साख़्ता-पन में
हमें अंदाज़ वो भाता है जिस में कुछ अदा निकले
इमदाद अली बहर
शेर
मोहब्बतें न रहीं उस के दिल में मेरे लिए
मगर वो मिलता था हँस कर कि वज़्अ-दार जो था
राजेन्द्र मनचंदा बानी
शेर
जो हर्फ़-ए-हक़ की हिमायत में हो वो गुम-नामी
हज़ार वज़्अ के नाम-ओ-निशाँ से अच्छी है
इफ़्तिख़ार आरिफ़
शेर
नौ-गिरफ़्तार-ए-मोहब्बत हूँ मिरी वज़्अ' से तुम
इतना घबराओ न प्यारे मैं सँभल जाऊँगा
जुरअत क़लंदर बख़्श
शेर
कुछ एहतिराम भी कर ग़म की वज़्अ'-दारी का
गिराँ है अर्ज़-ए-तमन्ना तो बार बार न कर