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शेर
पुराने साल की ठिठुरी हुई परछाइयाँ सिमटीं
नए दिन का नया सूरज उफ़ुक़ पर उठता आता है
अली सरदार जाफ़री
शेर
थमे आँसू तो फिर तुम शौक़ से घर को चले जाना
कहाँ जाते हो इस तूफ़ान में पानी ज़रा ठहरे
लाला माधव राम जौहर
शेर
ज़मानों को उड़ानें बर्क़ को रफ़्तार देता था
मगर मुझ से कहा ठहरे हुए शाम-ओ-सहर ले जा