aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "پذیرائی"
कू-ब-कू फैल गई बात शनासाई कीउस ने ख़ुश्बू की तरह मेरी पज़ीराई की
ऐ ख़्वाब-ए-पज़ीराई तू क्यूँ मिरी आँखों मेंअंदेशा-ए-दुनिया की ताबीर उठा लाया
फूल को चूम के गुलज़ार बना सकती हैऐसी इक बात है होंटों की पज़ीराई में
इस क़दर ऊँची हुई दीवार-ए-नफ़रत हर तरफ़आज हर इंसाँ से इंसाँ की पज़ीराई गई
ये कार-ए-मोहब्बत भी क्या कार-ए-मोहब्बत हैइक हर्फ़-ए-तमन्ना है और उस की पज़ीराई
उसे बाम-ए-पज़ीराई पे कैसे छोड़ दूँ अबयही तन्हाई तो मेरे लिए सीढ़ी बनी है
बर्ग-ए-आवारा को अब अपना पता याद नहींक्या हुआ तेज़ हवाओं की पज़ीराई में
ज़िंदगी पर भी कोई ज़ोर नहींदिल ने हर चीज़ पराई दी है
मैं जानता हूँ मुझे मुझ से माँगने वालेपराई चीज़ का जो लोग हाल करते हैं
दर्द-ए-दिल की उन्हें ख़बर क्या होजानता कौन है पराई चोट
खुल गया उन की आरज़ू में ये राज़ज़ीस्त अपनी नहीं पराई है
जो हो सका न मिरा उस को भूल जाऊँ मैंपराई आग में क्यूँ उँगलियाँ जलाऊँ मैं
इस लिए आरज़ू छुपाई हैमुँह से निकली हुई पराई है
शाएरी तो वारदात-ए-क़ल्ब की रूदाद हैक़ाफ़िया-पैमाई को मैं शाएरी कैसे कहूँ
अग़्यार को गुल-पैरहनी हम ने अता कीअपने लिए फूलों का कफ़न हम ने बनाया
अक़्ल हर बार दिखाती थी जले हाथ अपनेदिल ने हर बार कहा आग पराई ले ले
कहते हैं ग़ज़ल क़ाफ़िया-पैमाई है 'नासिर'ये क़ाफ़िया-पैमाई ज़रा कर के तो देखो
दर्द ज़ंजीर की सूरत है दिलों में मौजूदइस से पहले तो कभी इस के ये पैराए न थे
अपनी सूरत लगी पराई सीजब कभी हम ने आईना देखा
ये अपने दिल की लगी को बुझाने आते हैंपराई आग में जलते नहीं हैं परवाने
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