aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "پچھلے"
दी मुअज़्ज़िन ने शब-ए-वस्ल अज़ाँ पिछले पहरहाए कम्बख़्त को किस वक़्त ख़ुदा याद आया
पिछले बरस भी बोई थीं लफ़्ज़ों की खेतियाँअब के बरस भी इस के सिवा कुछ नहीं किया
चेहरे से झाड़ पिछले बरस की कुदूरतेंदीवार से पुराना कैलन्डर उतार दे
हज़ार तरह के थे रंज पिछले मौसम मेंपर इतना था कि कोई साथ रोने वाला था
वही गुलशन है लेकिन वक़्त की पर्वाज़ तो देखोकोई ताइर नहीं पिछले बरस के आशियानों में
वो अब वहाँ है जहाँ रास्ते नहीं जातेमैं जिस के साथ यहाँ पिछले साल आया था
और कम याद आओगी अगले बरस तुमअब के कम याद आई हो पिछले बरस से
पिछले सफ़र में जो कुछ बीता बीत गया यारो लेकिनअगला सफ़र जब भी तुम करना देखो तन्हा मत करना
सर्द ठिठुरी हुई लिपटी हुई सरसर की तरहज़िंदगी मुझ से मिली पिछले दिसम्बर की तरह
बे-धड़क पिछले पहर नाला-ओ-शेवन न करेंकह दे इतना तो कोई ताज़ा-गिरफ़्तारों से
थक के यूँ पिछले पहर सौ गया मेरा एहसासरात भर शहर में आवारा फिरा हो जैसे
शाख़-ए-मिज़्गाँ पे महकने लगे ज़ख़्मों के गुलाबपिछले मौसम की मुलाक़ात की बू ज़िंदा है
जाने क्या सोच के हम तुझ से वफ़ा करते हैंक़र्ज़ है पिछले जन्म का सो अदा करते हैं
अब के वहशत ने मुझे रोक लिया है वर्नापिछले मौसम की तरह लौट के घर जाना था
रात के पिछले पहर इक सनसनाहट सी हुईऔर फिर एक और फिर एक और आहट सी हुई
अब के हर ख़्वाब हुआ है ख़ंजरपिछले मंज़र की तरफ़ लौटते हैं
फेंका था किस ने संग-ए-हवस रात ख़्वाब मेंफिर ढूँढती है नींद उसी पिछले पहर को
कोई तो बात है पिछले पहर में रातों केये बंद कमरा अजब रौशनी से भर जाए
पिछले जनम का कोई त'अल्लुक़ था उस के साथदेखे बग़ैर मुझ को ख़द-ओ-ख़ाल याद थे
रात के पिछले पहर ध्यान तिराकोई साए में खड़ा हो जैसे
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