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शेर
अनवर मिर्ज़ापुरी
शेर
गुल-ओ-गुलचीं का गिला बुलबुल-ए-ख़ुश-लहजा न कर
तू गिरफ़्तार हुई अपनी सदा के बाइ'स
अल्ताफ़ हुसैन हाली
शेर
किया था ज़ुल्म तो गुलचीं ने तुम पे अहल-ए-चमन
ये तुम ने आग गुलिस्ताँ को क्यूँ लगा दी है
अतहर ज़ियाई
शेर
दर-ओ-दीवार-ए-चमन आज हैं ख़ूँ से लबरेज़
दस्त-ए-गुल-चीं से मबादा कोई दिल टूटा है
शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम
शेर
हमीं ने चुन लिए फूलों के बदले ख़ार दामन में
फ़क़त गुलचीं के सर इल्ज़ाम ठहराया नहीं जाता
अनीस अहमद अनीस
शेर
ख़ुदा समझे ये क्या सय्याद ओ गुलचीं ज़ुल्म करते हैं
गुलों को तोड़ते हैं बुलबुलों के पर कतरते हैं
लाला माधव राम जौहर
शेर
गुलचीं बहार-ए-गुल में न कर मन-ए-सैर-ए-बाग़
क्या हम ग़ुबार दामन-ए-बाद-ए-सबा के हैं