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शेर
तन्हाई से आती नहीं दिन रात मुझे नींद
या-रब मिरा हम-ख़्वाब ओ हम-आग़ोश कहाँ है
शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम
शेर
'सिराज' इन ख़ूब-रूयों का अजब मैं क़ाएदा देखा
बुलाते हैं दिखाते हैं लुभाते हैं छुपाते हैं
सिराज औरंगाबादी
शेर
मुझे इस ख़्वाब ने इक अर्से तक बे-ताब रक्खा है
इक ऊँची छत है और छत पर कोई महताब रक्खा है
ख़ावर एजाज़
शेर
मेरा हर ख़्वाब तो बस ख़्वाब ही जैसा निकला
क्या किसी ख़्वाब की ताबीर भी हो सकती है
फ़रहत नदीम हुमायूँ
शेर
पत्थर जैसी आँखों में सूरज के ख़्वाब लगाते हैं
और फिर हम इस ख़्वाब के हर मंज़र से बाहर रहते हैं
अज़हर नक़वी
शेर
मुझ से ये प्यास का सहरा नहीं देखा जाता
रोज़ अब ख़्वाब में दरिया नहीं देखा जाता