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शेर
वो शायद हम से अब तर्क-ए-तअल्लुक़ करने वाले हैं
हमारे दिल पे कुछ अफ़्सुर्दगी सी छाई जाती है
मुज़्तर ख़ैराबादी
शेर
तर्क-ए-उल्फ़त से मोहब्बत का लिखा मिट न सका
वही अफ़्सुर्दगी-ए-शाम-ओ-सहर आज भी है
सय्यद बासित हुसैन माहिर लखनवी
शेर
शाम-ए-मिम्बर पर फ़ज़ीलत के बहुत संजीदा फ़रहाँ
सुब्ह-दम अफ़्सुर्दगी के फ़र्श पर बिखरा हुआ मैं
सिराज अजमली
शेर
अफ़्सुर्दा-दिल के वास्ते क्या चाँदनी का लुत्फ़
लिपटा पड़ा है मुर्दा सा गोया कफ़न के साथ
क़द्र बिलग्रामी
शेर
जोश मलीहाबादी
शेर
दोस्तो मेरे लिए कोई भी अफ़्सुर्दा न हो
ख़ुश-दिली से दम-ए-रुख़्सत मुझे रुख़्सत किया जाए
अंजुम सलीमी
शेर
अख़तर मुस्लिमी
शेर
कुछ ख़ुद भी हूँ मैं इश्क़ में अफ़्सुर्दा ओ ग़मगीं
कुछ तल्ख़ी-ए-हालात का एहसास हुआ है
नसीम शाहजहाँपुरी
शेर
बज़्म-ए-हुस्न-ओ-इश्क़ में 'अकबर' की अफ़्सुर्दा-दिली
दाद के लाएक़ नहीं बे-दाद के क़ाबिल नहीं