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शेर
अहल-ए-ज़बाँ तो हैं बहुत कोई नहीं है अहल-ए-दिल
कौन तिरी तरह 'हफ़ीज़' दर्द के गीत गा सके
हफ़ीज़ जालंधरी
शेर
दिल लगा लेते हैं अहल-ए-दिल वतन कोई भी हो
फूल को खिलने से मतलब है चमन कोई भी हो
बासिर सुल्तान काज़मी
शेर
कोई ऐसा अहल-ए-दिल हो कि फ़साना-ए-मोहब्बत
मैं उसे सुना के रोऊँ वो मुझे सुना के रोए
सैफ़ुद्दीन सैफ़
शेर
जो अहल-ए-दिल हैं अलग हैं वो अहल-ए-ज़ाहिर से
न मैं हूँ शैख़ की जानिब न बरहमन की तरफ़
नज़्म तबातबाई
शेर
हम अहल-ए-दिल ने मेयार-ए-मोहब्बत भी बदल डाले
जो ग़म हर फ़र्द का ग़म है उसी को ग़म समझते हैं
अली जवाद ज़ैदी
शेर
मिरे नक़्श-ए-क़दम पर अहल-ए-दिल का क़ाफ़िला होगा
मैं अपनी राह में ऐसी बग़ावत छोड़ आई हूँ